भारत में शिक्षा प्रणाली को मजबूत और समावेशी बनाने के लिए हर सरकार का यह संकल्प रहा है कि हर बच्चे तक शिक्षा पहुंचाई जाए। यह चुनौती न केवल शहरी क्षेत्रों में, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। तेलंगाना राज्य के मेडक जिले के बंडा बांका गांव का एक सरकारी स्कूल इस संकल्प का जीवंत उदाहरण है, जहां केवल एक ही छात्रा पढ़ाई करती है, और इस स्कूल को चलाने में सरकार हर साल 12 लाख रुपये खर्च करती है।
![]() |
Pic: BBC |
स्कूल और छात्रा की कहानी
मेडक जिले के बंडा बांका गांव का यह सरकारी स्कूल एक प्रेरणा का स्रोत बन गया है। यहां की अकेली छात्रा, लक्ष्मी, पांचवीं कक्षा की पढ़ाई कर रही है। इस छोटे से स्कूल में एक शिक्षक, एक रसोइया और एक चपरासी काम करते हैं, जो लक्ष्मी को शिक्षा प्रदान करने में जुटे रहते हैं। लक्ष्मी के माता-पिता का मानना है कि यह स्कूल उनके गांव का गर्व है और यहां उनकी बेटी को शिक्षा का पूरा अधिकार मिल रहा है।
यह स्कूल न केवल एक लड़की के लिए शिक्षा का द्वार खोलता है, बल्कि यह सरकार की शिक्षा नीति और उसके प्रतिबद्धता को भी स्पष्ट करता है कि हर बच्चे को शिक्षा मिलनी चाहिए, चाहे वह एक ही बच्चा क्यों न हो।
सरकारी खर्च और प्रतिबद्धता
यह सवाल उठता है कि जब स्कूल में सिर्फ एक बच्ची पढ़ाई कर रही है, तो क्या इतने बड़े खर्च का कोई औचित्य है? सरकारी खर्च की बात करें, तो इस स्कूल के संचालन में हर साल करीब 12 लाख रुपये का खर्च आता है, जिसमें शिक्षकों का वेतन, स्कूल का रख-रखाव, मिड-डे मील योजना और अन्य प्रशासनिक खर्च शामिल हैं।
सरकार का दृष्टिकोण इस मुद्दे पर स्पष्ट है। उनके अनुसार, शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) के तहत हर बच्चे को स्कूल में शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार है, चाहे वह एक हो या सौ। इस नाते, सरकार का मानना है कि लक्ष्मी जैसे बच्चों को शिक्षा मिलना आवश्यक है, और इसके लिए वह सभी संसाधन उपलब्ध कराती है।
सामाजिक और प्रशासनिक दृष्टिकोण
यह कहानी सरकारी नीति की सराहना करती है, लेकिन साथ ही यह भी सोचने को प्रेरित करती है कि क्या संसाधनों का अधिक प्रभावी उपयोग किया जा सकता है। क्या इन बच्चों को पास के बड़े स्कूलों में स्थानांतरित कर शिक्षा प्रदान की जा सकती है? या फिर इन छोटे स्कूलों को जोड़कर एक केंद्रीकृत प्रणाली बनाई जा सकती है, जिससे ज्यादा बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सके?
एक प्रेरणा की कहानी
लक्ष्मी का अकेले स्कूल जाना और समर्पण के साथ पढ़ाई करना यह दर्शाता है कि शिक्षा का मूल्य केवल संख्या से नहीं, बल्कि शिक्षा के अधिकार और उसकी गुणवत्ता से मापा जाना चाहिए। इस कहानी में हमें यह प्रेरणा मिलती है कि शिक्षा न केवल एक प्रक्रिया है, बल्कि यह जीवन को बदलने वाली शक्ति भी हो सकती है।
निष्कर्ष
तेलंगाना के बंडा बांका गांव का यह स्कूल भारतीय शिक्षा प्रणाली की जटिलताओं और सरकार की प्रतिबद्धताओं का प्रतीक है। यह न केवल सरकार के शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण को दर्शाता है, बल्कि हमें यह सोचने पर भी मजबूर करता है कि संसाधनों का बेहतर उपयोग कैसे किया जा सकता है, ताकि शिक्षा की गुणवत्ता और उपलब्धता को सुधारने के लिए अधिक प्रभावी कदम उठाए जा सकें।