सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी छोड़कर शुरू किया गधा पालन, अब हर महीने कमा रहें है लाखों रुपए..

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Donkey Milk Farming: हमारे देश में अगर कोई पढ़ा लिखा लड़का या लड़की अपनी नौकरी छोड़कर कोई व्यवसाय शुरू करते हैं, तो आमतौर पर उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ता है। ज्यादातर लोगों का कहना होता है कि अगर यही काम करना था, तो लाखों रुपए खर्च करके पढ़ाई क्यों की थी।

कर्नाटक के कन्नड़ जिले के बंतवाल गाँव में जन्म लेने वाले श्रीनिवास गौड़ा (Srinivas Gowda) इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद एक सॉफ्टवेयर कंपनी में जॉब करते थे, लेकिन एक दिन उन्होंने अपनी जॉब से रिजाइन दे दिया और गाँव लौटकर गधा पालन करने लगे। जाहिर-सी बात है कि उनके इस फैसले से न तो उनका परिवार खुश हुआ और न ही गाँव वाले, बल्कि आस पड़ोस के लोगों ने श्रीनिवास का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया।

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ऐसे में अक्सर युवाओं का आत्मविश्वास कम हो जाता है और वह अपनी इच्छा के विरुद्ध सिर्फ लोगों के तानों से बचने के लिए नौकरी करते हैं, लेकिन कर्नाटक के रहने वाले श्रीनिवास गौड़ा (Srinivas Gowda) ने ऐसा नहीं किया। श्रीनिवास एक बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी में जॉब करते थे, लेकिन एक दिन उन्होंने अचानक से नौकरी छोड़ दी और गधा पालन शुरू कर दिया। 

दोस्तों ने उड़ाया मजाक, फिर भी नहीं हटे पीछे

दरअसल 42 वर्षीय श्रीनिवास गौड़ा लंबे समय से गधों की स्थिति पर ध्यान दे रहे थे, इस दौरान उन्हें महसूस हुआ कि गधों से दिन भर काम करवाया जाता है जबकि उन्हें भरपेट भोजन भी नहीं मिलता है। श्रीनिवास गधों की ऐसी दुर्दशा नहीं देख पाए, लिहाजा उन्होंने इस बेजुबान जानवर की बेहतरी के लिए काम करने का फैसला किया।लेकिन जब श्रीनिवास गौड़ा ने अपने दोस्तों के सामने गधों का फार्म खोलने का आइडिया रखा, तो उनके दोस्त उनका मजाक उड़ाने लगे। श्रीनिवास को इस बात का बुरा जरूर लगा, लेकिन वह मन ही मन तय कर चुके थे कि उन्हें गधा फार्म खोलना है। बस फिर क्या था, श्रिनिवास गौड़ा ने साल 2020 में अपनी जॉब छोड़ दी और इरा गाँव में तकरीबन 2.3 एकड़ की जमीन खरीद ली।

उस जमीन में श्रीनिवास ने गधों के लिए एक फार्म तैयार किया, जिसमें उन्होंने गधे पालना शुरू कर दिया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि पूरे कर्नाटक राज्य में गधों के लिए सिर्फ एक ही फार्म है, जिसे साल 2020 में श्रीनिवास द्वारा शुरू किया गया था। जबकि हमारे देश में गधों के लिए सिर्फ दो फार्म हैं, ऐसे में आप समझ ही सकते हैं भारत में गधों की स्थिति कितनी खराब है।श्रीनिवास गौड़ा के फार्म में कुल 20 गधे हैं, जिनके खाने पीने का पूरा ख्याल रखा जाता है। 

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श्रीनिवास का कहना है कि इस मेहनती जानवरी की संख्या तेजी से गिरावट आ रही है, क्योंकि धोबी अब कपड़े धोने के लिए गधों के बजाय मशीनों का इस्तेमाल करने लगे हैं। ऐसे में उन्हें गधा पालन से कोई लेना देना नहीं है, जिसकी वजह से इनकी मांग तेजी से कम होती जा रही है।गधा फार्म खोलने से श्रीनिवास को भी फायदा मिलता है, क्योंकि वह गधी का दूध बेचते हैं। 

 अब तक 17 लाख रुपये का आर्डर मिल चुका 

आपको शायद पता न हो, लेकिन गधी का दूध दुनिया में सबसे महंगे दूधों में से एक माना जाता है। गधी के 30 मिली लीटर दूध की कीमत लगभग 150 रुपए होती है, जिसकी वजह से श्रीनिवास को अच्छा खासा मुनाफा हो जाता है।श्रीनिवास गधा फार्म से रोजाना कई लीटर दूध निकालते हैं, जिसे वह कॉस्मेटिक आइटम्स बनाने वाली कंपनियों को बेचते हैं। श्रीनिवास को गधी के दूध के लिए अब तक 17 लाख रुपए का ऑर्डर मिल चुका है, जबकि वह गधी के दूध को घर-घर बेचने की तैयारी भी कर रहे हैं।इसके लिए श्रीनिवास मॉल, दुकानों और सुपरमार्केट की मदद लेंगे, जहाँ गधी के दूध के पैकेट्स सप्लाई किए जाएंगे। 

गधे के पेशाब और गोबर से भी कमाई

इतना ही नहीं गधे के पेशाब की कीमत भी बहुत ज्यादा होती है, जिसके 1 लीटर पेशाब के लिए 500 से 600 रुपए खर्च करने पड़ते हैं।गधे के गोबर से तैयार होने वाली खाद मिट्टी को उपजाऊ बनाने के साथ-साथ फसल की पैदावार बढ़ाने में भी मददगार साबित होती है, जिसे बेचकर श्रीनिवास पैसा कमाते हैं। कुल मिलाकर गधों का फार्म खोलने से श्रीनिवास को हर तरफ से कमाई होती है, क्योंकि गधा एक ऐसा जानवर है जो अपने मालिक को मुनाफा ही मुनाफा देता है।

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हालांकि इसके बावजूद भी लोग गधे का मजाक उड़ाते हैं और उसकी सहनशक्ति को बेकार समझते हैं, लेकिन देखा जाए तो गधा ही एक ऐसा जानवर है जो अपनी अहमियत को समझता है। वह न सिर्फ बोझ उठाता है, बल्कि दूसरों के बोझ को कम भी करता है और बदलते में कुछ भी नहीं मांगता है।


श्रीनिवास ने अपने इस प्रयास से न सिर्फ गधों की दुर्दशा को ठीक किया, बल्कि उन्हें एक बेहतर जीवन देने की कोशिश भी की है। वहीं दूसरी तरफ गधों से प्राप्त होने वाले दूध, पेशाब और खाद आदि को बेचकर श्रीनिवास सालाना लाखों रुपए की कमाई भी कर रहे हैं, जिससे उनके आलोचकों की बोलती बंद हो गई है।

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